*****This poem is by Gopal Das Neeraj and I have got it from one of my friends' blog.*****
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !
श्रम के जल से ही राह सदा सींचती है ,
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है ,
शूलों से ही शृंगार पथिक का होता ,
मंज़िल की मांग लहू से ही सजती है ,
पग में गति आती है छाले छिलने से ,
तुम पग पग पर जलती चट्टान धरो |
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !
फूलों से मग आसान नहीं होता है ,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है ,
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी ,
है नाश जहाँ निर्माण वहीँ होता है ,
मैं बसा सकूं नव स्वर्ग धरा पर जिससे ,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो |
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !
मैं पंथी तूफानों में राह बनाता ,
मेरी दुनिया से केवल इतना नाता -
वे मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर ,
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता ,
मैं ठुकरा सकूं तुम्हे भी हंसकर जिससे ,
तुम मेरा मन -मानस पाषाण करो |
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !
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