Wednesday, July 18, 2007

बावरची

बावरची , जी हाँ आप में से कई लोग इस फिल्म को पहले भी देख चुके होंगे । पर उस दिन जब यही फिल्म टीवी पर देखी तो कई बातें दिमाग में फिर से घूम गयीं। सच ही तो है छोटी छोटी खुशियों में ही तो जिंदगी का रस है , अगर उनको ignore करते जाओ तो कितना मुश्किल हो जाएगा थोड़े दिनों में जीने का मकसद तलाश पाना। It is so simple to be difficult, but it is so difficult to be simple. और भी तमाम प्यारी प्यारी बातों से सबक निकालते हुए यह फिल्म शायद इस बात की ओर भी इशारा करती है कि किस स्तर पर सामाजिक चेतना को जाग्रत करने की जरूरत है ।

Tuesday, July 3, 2007

Really Inspiring

*****This poem is by Gopal Das Neeraj and I have got it from one of my friends' blog.*****

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !

श्रम के जल से ही राह सदा सींचती है ,
गति की मशाल आंधी में ही हंसती है ,
शूलों से ही शृंगार पथिक का होता ,
मंज़िल की मांग लहू से ही सजती है ,
पग में गति आती है छाले छिलने से ,
तुम पग पग पर जलती चट्टान धरो |

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !

फूलों से मग आसान नहीं होता है ,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है ,
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी ,
है नाश जहाँ निर्माण वहीँ होता है ,
मैं बसा सकूं नव स्वर्ग धरा पर जिससे ,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो |

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !

मैं पंथी तूफानों में राह बनाता ,
मेरी दुनिया से केवल इतना नाता -
वे मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर ,
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ़ता जाता ,
मैं ठुकरा सकूं तुम्हे भी हंसकर जिससे ,
तुम मेरा मन -मानस पाषाण करो |

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !

Sunday, July 1, 2007

शब्द नहीं हैं कहने को , मन कहता है रहने दो
कलम
नहीं रूक पाती है , दर्द बयाँ कर आती है । ।