Sunday, August 19, 2012

मैं वापस....

दोस्तों, मैं वापस से अपना ब्लॉग लिखना शुरू कर रहा हूँ । पिछला कुछ समय काफी दौड़- भाग भरा रहा, मुझे उम्मीद है कि अब जब मैंने फिर से पढ़ाई करने का फैसला किया है मेरे पास थोड़ा-बहुत समय तो रहेगा और फिर दर्द तो कहीं भी रहो, होता ही है । बस इसी उम्मीद से आज से ही शुरुआत करता हूँ ।

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई     - गुलजार


दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई

फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।

Thursday, May 22, 2008

साधारणतया मौन अच्छा है ,
किन्तु मनन के लिए ।
जब शोर हो चारों ओर,
सत्य के हनन के लिए ।
तब तुम्हे अपनी बात ,
ज्वलंत शब्दों में कहनी चाहिए ।
सिर कटाना पड़े या न पड़े ,
तैयारी तो उसकी होनी चाहिए ।

--भवानी प्रसाद मिश्र